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केंद्र सरकार के 29 श्रम कानूनों को मिलाकर चार नए कोर्ट बनाने के निर्णय पर खदान मजदूर संघ ने विरोध जताया

केंद्र सरकार द्वारा वर्तमान में लागू 29 विभिन्न श्रम कानूनों को मिलकर चार नए कोर्ट बनाने का प्रयास किया जा रहा है जिसमें कई आपत्तिजनक व्यवस्था को जोड़ा गया है। इस संबंध में भारतीय मजदूर संघ से संबद्ध खदान मजदूर संघ भिलाई के महामंत्री एमपी सिंह ने कहा कि देश के सभी श्रम संगठनों द्वारा केंद्र सरकार के इस प्रयास का विरोध किया जा रहा है। भारतीय मजदूर संघ ने केंद्र सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए 10 -16 अक्टूबर 2020 को चेतावनी सप्ताह एवं 28 10 2020 को विरोध दिवस के रूप में मनाते हुए प्रधानमंत्री के नाम से ज्ञापन सौंपा था। इस कड़ी में दिनांक 26 11 2020 को देश भर में श्रम संगठनों द्वारा विरोध के रूप में हड़ताल किया जा रहा है ।
भारतीय मजदूर संघ एवं इससे संबद्ध सभी श्रम संगठनों ने केंद्र सरकार के इस प्रयास का विरोध करता है किंतु दिनांक 26 11 2020 को प्रस्तावित हड़ताल से अपने आपको अलग रखता है।

भारतीय मजदूर संघ का यह स्पष्ट मानना है कि उक्त प्रस्तावित हड़ताल पूर्णता राजनैतिक है।एक तरफ जहां भारतीय मजदूर संघ ने चेतावनी सप्ताह एवं विरोध दिवस के समय केवल कर्मचारी हित से जुड़े इस मामले पर ही केंद्र सरकार का विरोध किया वहीं इस हड़ताल में शामिल श्रम संगठनों ने अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर इसमें अन्य मुद्दों को जोड़कर और कर्मचारियों को इस हड़ताल में झोंक कर केवल अपने राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति करने का प्रयास किया है।आज सेल में रोज नए नए नियम और परिपत्र के माध्यम से कर्मियों को मिलने वाली सुविधाओं में लगातार कटौती हो रही है। वेतन समझौता विगत 4 वर्षो से लंबित है।सेल के निदेशक वित्त अपने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में यह कहते हैं कि वेतन समझौता करने के लिए तो सेल प्रबंधन तैयार है किंतु कर्मियों को एरियस नहीं मिलेगा क्योंकि सेल इतने फायदे में नहीं है।किंतु इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल में शामिल श्रम संगठनों ने अपने केंद्रीय चार्टर ऑफ डिमांड में इस मुद्दे को शामिल नहीं किया और स्थानीय स्तर पर कर्मियों का सहयोग पाने के लिए इसे स्थानीय मुद्दे के रूप में जोड़ दिया गया है।

संघ का यह मानना है कि अगर हड़ताल केंद्र सरकार के द्वारा प्रस्तावित लेबर कोर्ट के विरोध में है तो ऐसे में उस में अन्य मुद्दों को जोड़कर अपने आकाओं के इशारे पर राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए इस्पात कर्मियों को रोकने का प्रयास क्यों? और फिर जब घाटे का रोना रोकर सेल प्रबंधन लगातार सुविधाओं में कटौती कर रहा है तो इस घाटे के लिए जिम्मेदार कारण भ्रष्टाचार के विरोध में यह श्रम संगठन चुप क्यों हैं? आज इस हड़ताल में शामिल एक प्रमुख वामपंथी श्रम संगठन (एटक) के कार्यकारी अध्यक्ष को अपने श्रमिकों के शोषण और कंपनी के अधिकारी के साथ मिलकर भ्रष्टाचार के माध्यम से कंपनी के पैसे के साथ हेराफेरी करना साबित हो चुका है फिर भी प्रबंधन के अधिकारियों के साथ मिलकर इस श्रम संगठन के कुछ पदाधिकारी उक्त ठेकेदार और कंपनी के अधिकारी को बचाने में लगे हैं ऐसा क्यों?एक तरफ कंपनी द्वारा उन ठेका श्रमिकों को तत्काल कार्य से निकाल दिया जाता है जो वेल्डिंग मशीन चोरी करते हुए पकड़ाते हैं वहीं दूसरी तरफ कंपनी के पैसों को भ्रष्ट तरीके से बंदरबांट करने वाले अधिकारी पर और ठेकेदार पर अब तक कोई कार्यवाही क्यों नहीं, क्योंकि चोरी दोनों ने की है मगर तरीका अलग अलग था एक ने कंपनी द्वारा खरीदा गया वेल्डिंग मशीन चोरी किया और एटक के कार्यकारी अध्यक्ष ने सीधे कंपनी के पैसे और श्रमिकों का वेतन का गबन किया मगर सजा मिली उसे छोटी चोरी में पकड़े गए चोरों को और एटक के कार्यकारी अध्यक्ष आज भी चोरी पकड़े जाने के बाद भी कंपनी के खास बने बैठे हैं और आज भी श्रमिक हित का दिखावा कर ईस हड़ताल में शामिल होकर भोले-भाले श्रमिकों को ठगने में लगे हैं,क्या ईसका विरोध नहीं होना चाहिए,आज ऐसी चोरी के कारण कंपनी फंड की कमी का हवाला देकर नियमित कर्मचारियों की सुविधाओं में लगातार कटौती कर रही है और ऐसे भ्रष्ट ठेकेदार अपना जेब भरने में लगे हैं मगर कोई ईसका विरोध नहीं कर रहा है न कंपनी के अधिकारी और एटक के नेता, विचार करें?भारतीय मजदूर संघ इस हड़ताल में शामिल अन्य सभी श्रम संगठनों के पदाधिकारियों से यह पूछता है कि जब विरोध प्रस्तावित लेबर कोर्ट का है तो ऐसे में अन्य मुद्दों को इसमें शामिल करना क्या राजनीतिक हथकंडा नहीं है?भ्रष्टाचार के विरोध में सड़क पर उतारकर हल्ला करने का दिखावा करना लेकिन अपने ही कार्यकारी अध्यक्ष का शोषण और भ्रष्टाचार साबित होने के बावजूद उस पर कोई कार्यवाही ना करना और चुप रहना चाहिए साबित नहीं करता है कि 26 11 2020 को प्रस्तावित हड़ताल केवल एक दिखावा है क्योंकि जब कोई भी श्रम संगठन कंपनी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर चुप्पी साध लेवे तो उसके द्वारा किया जा रहा कोई भी कार्य संदिग्ध हो जाता है।ऐसे में जो अन्य श्रम संगठन इस हड़ताल में साथ दे रहे हैं वो ईस पर विचार जरूर करें।

भारतीय मजदूर संघ दिखावे के लिए किसी तरह के भी राजनैतिक हथकंडे का विरोध करता है और इसलिए इस हड़ताल में शामिल महत्वपूर्ण मुद्दा (श्रम कानून में प्रस्तावित संशोधन का विरोध) का समर्थन करता है लेकिन दिखावे के लिए और केवल राजनैतिक स्वार्थ पूर्ति के लिए किए जा रहे इस हड़ताल से अपने आपको अलग रखता है।साथ ही सभी कर्मियों से यह अपील करता है कि हड़ताल में शामिल होने अथवा ना होने के लिए वे स्वयं अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए निर्णय लेवे क्योंकि स्थानीय खदान प्रबंधन में बैठे आला अधिकारी भी वामपंथी विचारधारा के पोषक है और आईओसी में होने वाले प्रत्येक हड़ताल का पर्दे के पीछे में रहते हुए समर्थन करते हैं। ऐसे में प्रबंधन से किसी तरह की कोई उम्मीद करना बेकार है। क्योंकि सभी कर्मचारियों और ठेका श्रमिकों को स्मरण दिला दूं कि कुछ वर्ष पूर्व भी ईस तरह की राष्ट्रीय मुद्दों पर राजहरा खदान में हड़ताल किया गया था और कुछ घंटों बाद ही तत्तकालीन महाप्रबंधक खदान के साथ राष्ट्रीय स्तर की मांग को पूरा करा लिया गया था जबकि उनकी सभी इकाइयों ने पुरे देश में हड़ताल किया पर सिर्फ राजहरा खदान में अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए हड़ताल समाप्त कर दिया गया था। भिलाई में भी हड़ताल जारी रहा था, बाकी आप लोगों को विचार करना है कि ऐसी राजनीति से प्रेरित हड़ताल में शामिल होना है या नहीं, भारतीय मजदूर संघ भी केन्द्र सरकार के ईस श्रम कानून का विरोध करता है और हमने कर्मचारी हित से जुड़े मामलों पर ही केन्द्र सरकार के ईस कानून का विरोध भी किया है और आगे भी करते रहेंगे जब तक सरकार इसमें संशोधन नहीं करतीं हैं मगर राजनीति से प्रेरित ईस हड़ताल से अपने को संघ अलग रखता है।

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