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गोबर बेचने अपने स्कार्पियो गाड़ी को ही करा दी डिजाइन व अपना व दुसरो का गोबर भी उसी में रख कमा रहा रोज हजार रुपये ….

स्कारपियो को गोधन न्याय योजना का लाभ लेने किया माडिफाइड, हर महीने कमा रहे तीस हजार रुपए

महेश हसवानी अपना और पड़ोसी गौपालकों का गोबर बेचने क्रय स्थल तक पहुंचाते हैं स्कारपियो से डीजल का और अन्य खर्च निकाल कर हर दिन कमा रहे एक हजार रुपए

Cg24 आजतक

 अपनी स्कारपियो को माडिफाईड करा आदर्श नगर निवासी महेश हसवानी ने इसे कार्गो वाहन की तरह उपयोग कर गोकुल नगर के अपने पड़ोसी गोपालकों का गोबर भी क्रय स्थल तक पहुंचाया और हर महीने  तीस हजार रुपए कमा  रहे हैं। अपने नवाचार से और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की गोधन न्याय योजना के माध्यम से आदर्श नगर, दुर्ग निवासी श्री महेश हंसवानी न केवल कोरोना के चलते व्यवसाय में आये संकट से बाहर आए अपितु उन्होंने युवाओं को राह भी दिखाई है कि ऊर्वर मस्तिष्क और सरकार के सहयोग से हर चुनौती का सामना आसानी से किया जा सकता है। श्री हसवानी सूअर पालन का व्यवसाय करते थे। सूअरों के लिए खाद्य सामग्री होस्टल में निकलने वाले वेस्ट मटेरियल से आती थी। हास्टल बंद हो गए और यह सामग्री आनी बंद हो गई। चार महीने कड़े आर्थिक संकट का समय रहा। फिर हरेली के दिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का गोधन न्याय योजना को लेकर संबोधन सुना। उन्हें लगा कि उनकी जो डेयरी है उसके लिए तो यह योजना बेहतरीन है ही, वे अपनी स्कारपियो के माध्यम से दूसरों के गोबर भी ले जा सकते हैं। बस क्या था, उन्होंने स्कारपियो को माडिफाइड करा लिया, इसमें तेईस हजार रुपए की राशि खर्च हुई। गोकुल नगर की अपनी डेयरी का गोबर भी वे क्रय स्थल तक लेकर गए और पड़ोसियों का भी। उनसे उन्होंने भाड़ा लिया। इसमें वो हर दिन छह सौ किलोग्राम तक गोबर ले जा कर क्रय स्थल पहुंच रहे हैं। महेश बताते हैं कि केवल गाड़ी के भाड़े से वो हर दिन हजार रुपए कमा रहे हैं। इस प्रकार तीस हजार रुपए महीने की आय वे कमा रहे हैं। अपनी डेयरी में भी तो गोबर आखिर क्रय स्थल तक ले जाना पड़ता। पहले एक्टिवा में अथवा बाइक में  भेजने में परेशानी होती थी, मुझे भी पड़ोसी गौपालकों को भी, अब सबको काफी आराम है। हंसवानी ने कहा कि गोधन न्याय योजना बहुत अच्छी योजना है। लोग यदि सजग हो तो सरकार उन्हें इतने सारे मौके देती है बस आपको लाभ उठाना चाहिए। मैं बहुत संतुष्ट हूँ। कोरोना काल में मेरे पास संसाधन काफी सीमित रह गए थे। इस योजना के बारे में मैंने सुना, फिर पूरा कैलकुलेशन किया। मुझे लगा कि इसका लाभ उठाया जा सकता है। शुरुआत में गाड़ी में ही गोबर ले जाकर देखा लेकिन ब्रेकर की वजह से काफी दिक्कत होती थी।

चुनौती को बदला वरदान में- महेश कहते हैं कि मैंने स्कारपियो शौक से ली थी। कोरोना काल की वजह से दिक्कत आई। दिक्कत में यह सीख मिली कि यदि अपने दिमाग खुले रखें तो परिस्थिति स्वयं अवसर प्रदान करती है। इसके साथ ही हमें निरंतर सरकार की योजनाओं पर भी नजर रखनी चाहिए। मैंने यह कार्य किया और इसका लाभ मुझे मिला। अब मैं अपनी डेयरी को और बढ़ाऊंगा। मुझे इस योजना ने आत्मविश्वास दिया है मौका मिला तो स्कारपियो तो फिर से ले लूंगा। असली बात यह है कि मैंने सीख लिया है कि किस तरह से परिस्थिति का उपयोग करूं। महेश हर दिन सुबह साढ़े चार बजे से एक बजे तक कड़ी मेहनत करते हैं। वे कहते हैं कि लोग काम करने तैयार होते हैं। सरकार अच्छी योजनाएं लाती हैं तो उनका परिश्रम निखर कर सामने आता है और आर्थिक रूप से उनकी स्थिति मजबूत होती है।

आत्मसंतोष का कार्य- महेश ने बताया कि माॅडिफाइड करने की वजह से उन्हें मवेशियों को भी अस्पताल तक पहुंचाने में आसानी हुई है। एक बार एक दुर्घटनाग्रस्त गाय को उन्होंने छातागढ़ तक छोड़ दिया ताकि वहां उसकी देखभाल हो सके। इस काम की वजह से बहुत खुशी हुई।

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